उपनिषद ज्ञान भाग ~ १० Upanishada wisdom for all.
इशोपनिषद श्लोक ८ ^
☆ थोड़ा बचा हुआ विवरण बता रहा हूं :
■ विष्णु सहस्त्रनाम के छठे श्लोक में अज्ञात नाम के ऋषि मुनि कहते हैं कि; वह विश्वकर्मा है - उसके कर्म से ही यह पूरा विश्व प्रकट हुआ है , निर्मित हुआ है ।
● और फिर हमारे ज्ञानेश्वर माऊली उनकी किताब अमृतानुभव में कहते है की; वही शिव तत्व है जिसे हम आत्मतत्व कहते है; वही पलट कर शक्ति के रूप में अपनी लीला / माया दिखता है । और तब ही यह संपूर्ण प्रकृति का विकास होता है ।
● इसीलिए विष्णु सहस्त्रनाम के पहले श्लोक में उसे विश्व, विष्णु मतलब : ऑल परवेडिंग व पूरा यूनिवर्स कहा है ।
■ और कहते हैं यह सृष्टि की निर्मिती, उसका भरण पोषण और उसका विनाश मतलब आदि मध्य अंत ये जो सब तीनों बातें हैं; जिन्हें करने वाले हैं ब्रह्मा विष्णु और महेश हैं; उन सबका मिलकर जो कार्य है वह इस परब्रह्म का ही तो है ।
¤《 वैसे तो वह निर्गुण निराकार होने के कारण कुछ करता नहीं है पर मानते हैं कि वो करता है; ताकि हमें अहंकार ना हो ।
विरुद्ध बातें एक साथ समझना थोड़ा मुश्किल तो है; लेकिन बहुत गहरी सोच करते जाओगे तो जरूर समझ में आएगा । 》
¤ इस प्रकार वह न करने वाला सब करता है ऐसा समझ कर हम निश्चिंत हो जाते हैं ।
■ जब हम हमारे जीवन का अभ्यास करते हैं; तब पता चलता है की बहुत कर्तुत्ववान व्यक्ति के भी हाथ में कुछ नहीं रहता । अगर वह स्वीकार नहीं करता, और कहता है की; मैं ही सब करने वाला हूं और जब इच्छित चीज नही होती तब उसे कितना दुख / निराशा होती है ?
■ इसलिए सब धर्म के ग्यानी कहते हैं :-
तू ही तू, अल्लाह मालिक, God is the only one all mighty.
● विश्व की रचना के बारे में भी सभी धर्म में कहते हैं :-उसीने ही सृष्टि का निर्माण किया है ।।
हरि 🕉️ तत्सत् ।।
आपका अपना, डॉक्टर प्रसाद फाटक. पुणे. भारत.
9822697288
Comments