उपनिषद ज्ञान भाग ४ । upanishad wisdom for happiness.

📃 उपनिषद ज्ञान भाग ४ :
ईशावास्य उपनिषद - 
कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेच्छत. समाः । 
एवं त्वयि नान्यथेतोऽस्ति न कमं लिप्यते नरे ॥२॥) । 
सरल अर्थ है - हर मनुष्य को कर्म करते हुए 100 साल जीने की आकांक्षा करनी चाहिए । इसके अलावा दूसरा कोई मार्ग नहीं है । और ऐसा करेंगे तो कर्म का लेप नहीं होगा । 
卐 पहली पंक्ति में बहुत बातें आती हैं । 
● एक - काम करो कर्म करते रहो ।
● दूसरी -100 साल तक / दीर्घकाल जियो और कर्म करते रहो । 
● तीसरी यदि आपको दीर्घकाल कर्म करते हुए जीना है तो स्वस्थ जीवन की जरूरत है । 
■ पहले पंक्ति को सम अप करेंगे : स्वस्थ रहो, दीर्घकाल जियो और कर्म करते हुए जियो ।
卐 दूसरे पंक्ति मे यह प्यार से बोला है; कि यह आपको मैंडेटरी है / कंपलसरी है । लेकिन यह कंपल्शन प्यार से होता है यदि आप आराम करते बैठो तो कोई आकर आपको मारने वाला तो है नहीं ।
● युवाओं के लिए जबरदस्त प्रेरणा दी है । जीवन का उद्देश्य ही दे दिया । work is worship.
काम से जब हम बोअर हो जाते हैं, थक जाते हैं तो मनोरंजन की तो जरूरत है । वह करना भी चाहिए लेकिन वोही करते रहेंगे या उसकी मात्रा ज्यादा हो जाएगी तो आप मुश्किल में पड़ जाएंगे । 
 हम मनोरंजन में रात-रात सोते तक नहीं है ! वैसा नहीं होना चाहिए । 
मेरी उम्र के लोगों को ( ६० + को ) 
भी यह नही समझना चाहिए की,  " बहुत कम कर दिया, अभी आराम करूंगा, मनोरंजन करूंगा घूमुंगा " 
यह सही नहीं ।  कुछ काम करना भी आवश्यक है । और हो सके तो निस्वार्थ भाव का कर्म करने की ज्यादा सुविधा भी अब आपके पास है । 
● आजकल लोग ४० की उम्र में भी थक जाते हैं - क्योंकि वह कर्म करते हुए उसमें अटैचमेंट बहुत बढ़ जाता है और उसमे स्वार्थी हव्यास की प्रेरणा होती है । इसलिए अटैचमेंट के सिवा कर्म करने की जरूरत बताइ है । 
कर्म के फल के दृष्टि से काम मत करो यह कहते हैं - यह कर्म योग भगवान ने बोल दिया है । गीता के तीसरे अध्याय में जो कहा वह कर्मयोग उपनिषद से ही तो आया है । हाल ही में 2024 ओलंपिक भारत के ब्रांझ मेडलिस्ट मनू भाकर ने भी इस अध्याय का उपयोग अपने जीवन में किया । 
● लेकिन इन सब बातों का बैलेंस रहता है । मतलब फल की आकांक्षा मत करो ,बल्की इसका भी अतिरेक नहीं होना चाहिए । काम में कुछ तो टारगेट भी होना चाहिए - नही रहेगा तो भी आलस्य बहुत बढता है । 
और other side × 
ज्यादा अटैचमेंट नहीं होना चाहिए - मस्तक पर आ जाता है । 
 महत्वपूर्ण बात यहां पर बताइए कि कर्म के ऊपर कंसंट्रेट करो उसके फल में के बारे में ज्यादा सोचते रहोगे तो गड़बड़ हो जाएगी ।
■ और कहा है कि अच्छे कर्म करो, बुरे कर्म मत करो क्योंकि ऋषि मुनि कभी नहीं कहेंगे कि 100 साल तक दाउद जैसे कर्म करते हुए जियो 🙄 ।
■ निजी जीवन के लिए किए गये कर्मों के अलावा दूसरों के लिए भी कुछ कम करो ।
■ अच्छे कर्म करते हुए स्वस्थता से दीर्घकाल रहना है । और जो भी काम हाथ मे लेंगे उसको पूर्णतया समर्पित भाव से करना है । full dedication is important. 
जय जगत् 🙏
हरि 🕉️ तत्सत् ।। धन्यवाद.
आपका अपना, डॉक्टर प्रसाद फाटक. पुणे. भारत.

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