उपनिषद ज्ञान भाग ~ ८ ॐ Upanishad wisdom ।
उपनिषद भाग ८ ~ सर्वाणि भूतान्यात्मन्येवानुपश्यति ।
सर्व भूतेषु चात्मानं ततो न विजुगुप्सते । ॥ ६॥
यस्मिन्सर्वाणि भूतान्यात्मेवाभूद्विजानतः ।
तत्र॒ को मोहः कः शोक एकत्वमनुपश्यतः ।॥७॥
● शब्दार्थ - जो इस प्रकार
से सब पशु, पक्षी, पेड़, पौधे आदि भूतो को आत्मा मे ही देखता है ओर आत्माको इन सब भूतो मे देखता है वह॒ इस विचार के कारण पाप व घृणा नहीं करता ।
॥६॥
जिस जानने वाले के ज्ञान मे यह सब भूत आत्मवत् हो गये, इसलिये आत्मवत् हो गये क्योकि कण-कण मे ईश ही बसा हुआ है । फिर वहां इन भूतों के अनेकत्व मे आत्मा के एकत्व unity in diversity देखने वाले के
लिए मोह कसा, ओर शोक कैसा ? ॥७॥
भावार्थ -
जहां एकत्व - oneness है वहां दूसरे का छीनने, दूसरे का ले लेना निरर्थक हो जाता है और दूसरे की घृणा - hatred भी निरर्थक हो जाती है । जात, पंथ, धर्म आदि कारण से अलगाव जो है; वह धीरे-धीरे घृणा में परिवर्तित होते हैं । और एकत्व से वह घृणा कम हो जाती हैं ।
■ आजकल परायापन और स्वार्थ इस कदर बढ़ रहा है कि हम एक दूसरे का छिन ले लेते हैं इतना के हम केवल खुद का ही विचार करने लगे हैं और अपनी पत्नी, माता, पुत्र व पुत्री इनका भी विचार करना कम हो गया है इससे नाते संबंध बिगड़ रहे हैं ।
● और इन्हीं कारण से मतलब - स्वार्थ और घृणा के कारण से ही चोरी होती है, डकैती होती है, भ्रष्टाचार होता है । यह सब होता है ।
इस समय कई बातें ऐसी हो रही हैं कि जिसमें एक नहीं अनेक दुर् भाव - wrong feelings and thoughts उत्पन्न हो रहे है ।
लेकिन जैसे-जैसे हम इस परब्रह्म को देखेंगे, समझेंगे, जानेंगे, महसूस करेंगे तब पराकोटी का परायापन और स्वार्थ कम होते जाता है ।
मेरा भी क्वचित मतभेद हो जाता है, झगड़ा हो जाता है, नाराजी होती है । पर अब इस अध्यात्म के कारण ' सब छोड़ के आगे चलने का प्रेक्टिस ' हो गया है ।
● आजकल लोगोंमे ' गेम आफ थ्रोंस ' सीरीज जैसे घृणा होती है । जहां मानव मानव में बहुत ही स्वार्थ और घृणा का होना दिखाया गया है । हिंसा को दिखाया है । आज समाज में वह सब बढ़ रहा है । वह भी एकत्व से कम हो जाएगा ||
● सामान्य मनुष्य मे भी मन मुटाव बहुत होते हैं; इसलिए रिश्ते खत्म होते जा रहे हैं । आत्मा को देखने वाले के लिए मनमुटाव कम से कम हो सकता है और नाते संबंध सुधार सकते हैं ।
■ परमात्मा को जानने से हमारे अंदर का मोह और शोक भी कम होता है ।
● जब हम सब कुछ जान गए हैं, पूरे विश्व को जान गए हैं; उसे हम परमात्मा भी कहने लगे हैं तो हम अग्यानी कैसे होंगे ? मोह का मतलब ही अज्ञान है । और जंहा ज्ञान है तो मोह नही है ।
● परमात्मा को जानने से यह भी सहजता से पता चल जाता है कि यह सब बॉडी संबंधित बातें जाने ही वाली है, खत्म होने वाली है परमनेंट नहीं है |
तो किसी व्यक्ति का खोना यह एक बहुत दुखदाई घटना होने के बावजूद पूरे विश्व के अस्तित्व में वह घटनाएं छोटी लगने लगती है ।
● इसलिए की हम उसे अत्यंत विशाल से जुड़ गए हैं इसलिए यह काम होता है । तो उस विशाल से जुड़ेंगे तो यह समझ में आता है कि जो हम हैं हमारा भवताल मतलब small circle of our body and related life है वह बहुत छोटासा है । यंहा की हर चीज छोटीसी है । इसलिए मोह दुख भी कम होता है ।
मतलब यह दोनों तीनों और भी कइ बातें जो अच्छे भाव नहीं है वह कम हो जाते हैॅ ।
● लेकिन वह प्राप्त करने के लिए ईश्वर से जुड़े रहना चाहिए । नकारात्मक भाव है जो है वह अचानक से आते हैं । उन को उसी वक्त नियमन करने के लिए यह सब चीजों को याद रखना मुश्किल काम होता है; लेकिन करेंगे तो फायदा जरूर है ।
हरि 🕉️ तत्सत् ।।
आपका अपना, डॉक्टर प्रसाद फाटक. पुणे. भारत.
9822697288
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