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शांतता आणि समृद्धीसाठी जगाने मानवता स्वीकारण्याची गरज आहे. माणूसपण 30.

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● शांतता आणि समृद्धीसाठी जगाने मानवता स्वीकारण्याची गरज आहे. १. व्यक्तीने केलेली विविध गुन्ह्यांमधील अमानवी स्वार्थी कृत्ये. २. नवीन साम्राज्यवाद किंवा माझ्या धर्मांच्या सत्तेखालील जग अथवा अनैतिक युद्धांद्वारे इतरांचे शोषण किंवा वर्चस्व गाजवण्यासाठी गट, देश किंवा धर्म यांनी केलेल्या  आक्रमक कृती.  ● या अमानुष गोष्टी जगातील शांतता आणि समृद्धीला धक्का पोहोचवतात.  म्हणूनच -   ● आपण ' मानवता ' तसेच ' जगा आणि जगू द्या ' हे धोरण स्वीकारले पाहिजे. तेच सर्वांसाठी चांगले आहे.  चला, येणाऱ्या पिढ्यांसाठी एक नवीन जग निर्माण करूया.

उपनिषद ज्ञान भाग ५ Upanishad wisdom.

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उपनिषद ग्यान ५ :  ■ प्रियजन को मेरा हार्दीक नमस्कार | 🙏  निष्काम कर्म करने के लिए दो युक्तियां बताई गई है । इसमें एक है कि दूसरे श्लोक में जो बोला था - " जो भी है वह उसीका तो है, मेरा है ही नहीं । " यह बात सोच कर निष्काम हो जाएंगे । जब करने वाला, कराने वाला और फल देने या न देने वाला वही तो है; तो मैं काहे को चिंता करूं ? मेरा कुछ है ही नहीं.. इसलिए फल से भी मैं बंधा नहीं हूं । यह एक तरीका है ।  दूसरा तरीका है कि जो भी मैंने किया है हर एक चीज उसको समर्पित कर देना । यदि मैं खाता हूं तो पहले उसे नैवेद्य दिखाना - समर्पण करना । और यदि मैं सक्सेसफुल हो जाता हूं यशस्वी हो जाता हूं तो वह भी उसी के कारण है तो उसी को अर्पित है । हर एक चीज उसको अर्पण करना ।  यह कर्म फलों को त्याग करने की युक्तियां हैं । वैसे ही कर्म फल को त्यागना आसान बात नहीं होगी । □ असुर्या नाम ते लोका अन्धेन तमसावृताः \  ता स्ते प्रत्याभिगच्छन्ति ये के चात्महनो जनाः \\३ जो अपनी आत्मा का हनन करते हैं वे लोग मरने के बाद अंधकार से आवृत " असूर्य "लोक स्थान पर में पहुंच जाते हैं । जो लोग गलत काम करते ...