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उपनिषद ज्ञान भाग ~ १३ upanishad wisdom for us.

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उपनिषद ज्ञान भाग ~ १३. इशोपनिषद श्लोक १२ और १३ - अन्धं तमः प्रविशन्ति येऽसंभूतिमुपासते ।  ततो भूय इव ते तमो य उ संभूत्याः रताः ।१२॥  अन्यदेवाहुः संभवादन्यदाहुरसंभवात्‌ ।  इति शुश्रुम धीराणां  ये नस्तद्विचचक्षिरे ॥ १३।  जो असंभूति' (अ+-सं + भूति), अर्थात्‌ व्यक्तिवाद individualism की उपासना करते हैं वे गहन अन्धकार मे प्रवेश करते है ।  और जो संभूति" (सं + भूति) अर्थात्‌ समष्टिवाद pluralism   उससे भी गहन अन्धकार में प्रवेश करते हें ।१२॥  संभव" ( सं + भव ) अर्थात्‌ " ' समष्टिवाद' का कुछ और फल है ।  असंभव' ( अ + सं + भव ) अर्थात्‌ समिष्टरूप में न रहकर व्यक्ति को समाज मे मुख्य मानकर ' व्यक्तिवाद'  से चलने का कुछ ओर फल है ।  धीर लोगों ने इन दोनों की जो व्याख्या की है उससे ऐसा ही सुनते आये हैं ॥१३॥  इन २ श्लोक का यह था आचार्य सत्यव्रत जी ने किया हुआ सीधा भाषांतर ।  आज के विश्व में जो दो बड़े पॅटर्न चलते आए हैं - गत 100 साल में; वह आध्यात्मिक नहीं - आर्थिक विषय में और सामाजिक विषय में व्यवस्थापन करने वाले दो वाद हैं । बहुत प्...