उपनिषद ज्ञान भाग ~ १४ Upanishadas for you.
उपनिषद ज्ञान भाग ~ १४ इशोपनिषद श्लोक १४ - सभूतिं च विनाशं च यस्तद्वेदोभयं सह । विनाशेन मृत्युं तीर्त्वा संभूत्याऽमृतमश्नुते ॥ १४ जो संभूति ", अर्थात “समष्टि-वाद' तथा असंभूति, अर्थात ' व्यक्तिवाद' इन दोनों को एक साथ जानते हैं वे सफल होते हैं । वे असंभूति (अपना भला देखने की दृष्टि) अर्थात् व्यक्तिवाद से मृत्यु के प्रवाह को तो तैर लेते है और अमृत को संभूति (सबका भला देखने की दृष्टि) अर्थात् समष्टिवाद से चखते हैं । [ असंभूति अथवा व्यक्तिवाद (individualism) विनाश-मूलक है इसलिये असंभूति का ही दूसरा नाम “विनाश" है ]।। १४॥ नरहरि सुनार की एक कथा अब सुनिए । कथानक से कैसे भेद को दूर करते थे देखीये - अलग-अलग भेदभाव के ऊपर तोड बताई है । उपनिषद के गत 6 श्लोक में आपने देखा है के समन्वय महत्वपूर्ण है। इसलिए यह है उस वक्त के शैव और वैष्णव के भेद के बारे में सुनिए । एक पंथ के लोग भगवान को केवल एक एक रूप में ही जानते थे । उस वक्त इस कारण से शैव और वैष्णव पंथ में बड़े झगड़े होते थे । नरहरि सुनार जी शिव जी को ही मानते थे । सुनार होने के कारण उ...