उपनिषद ज्ञान भाग १. The upanishadas.
उपनिषद १ :
■ प्रिय जन को मेरा हार्दीक नमस्कार | 🙏
आनेवाले कुछ दिनो मे मै आपके सामने उपनिषदों के कुछ विचार रखना चाहता हूं । 📚
यह पोस्ट्स लिखित व व्हिडिओ रूप मे रहेंगी ।
यह सोच हम सब मानव समाज के लिये उपयुक्त है । लेकिन मै चाहता हूं के यह सोच विशेषतः बहुतसे युवक युवती जन तक पहुँचे । तो कृपया उनसे बात करके फिर उनसे जरूर share कीजियेगा | 🙏
🕉️ हमारे जो सैकड़ो उपनिषद हैं; उनमें से सबसे पहला है - ईशोपनिषद । शुरू में हम इसके बारे में कुछ जानकारी लेंगे ।
इसके मंगलाचरण में ऋषीगण कहते हैं, कि यह सब विश्वरूपी आत्मतत्व या जिसे हम परमात्मा भी कहते हैं वह एक है और परिपूर्ण है ।
यह विश्व रूपी आत्मतत्व जिसे हम सर्वव्यापी नारायण भी कहते हैं - वह एक ऐसा कुआं है; जिसका चाहे जितना भी पानी निकाल लो; वह उतना ही भरा हुआ रहता है । मतलब यह एक जादुई कुआं है ! 😆
जोक्स अपार्ट : थोड़ा और समझाता हूं; कि यह ईश्वर इतना परिपूर्ण है के इससे कुछ चीज निकाली जाय तो भी उतने की उतनी रहती है, और इसमें कुछ भरा जाय तो यह बढती नही expand नहीं होती। So यह तत्त्व कंपलीटली कंप्लीट है ।
और थोड़ा सा समझाता हूं; यदि आपको एक वायु का गोला या बबल दिया जाए तो उसमें आप कुछ कण या particle डाल सकते हो | या यदि आपको एक बर्फ का गोला दिया जाय तो उसमें भी कुछ कण / पदार्थ डाल सकते हो | लेकिन यदि आपको एक लोहे का गोला दिया जाए तो क्या उसमें आप कोई एक छोटा-सा भी परमाणु भी डाल पाओगे ? नहीं ना ? तो यह ईश्वर लोहे का घन गोल जैसा निबिड तत्व है । और हम हैं उसे लोहगोल के छोटे-छोटे परमाणु या कण - जो इससे कभी भी अलग नहीं हो सकते । और भी अर्थ है कि हम सब मानव, वनस्पति, प्राणी, ग्रहगोल, तारे व अंतरिक्ष मात्र इसके पार्ट है और इसीलिए हम सब एक ही है ।
जय जगत् 🙏
हरि 🕉️ तत्सत् ।।
आपका अपना, डॉक्टर प्रसाद फाटक. पुणे. भारत.
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