उपनिषद ज्ञान भाग ५ Upanishad wisdom.
उपनिषद ग्यान ५ :
■ प्रियजन को मेरा हार्दीक नमस्कार | 🙏
निष्काम कर्म करने के लिए दो युक्तियां बताई गई है । इसमें एक है कि दूसरे श्लोक में जो बोला था - " जो भी है वह उसीका तो है, मेरा है ही नहीं । " यह बात सोच कर निष्काम हो जाएंगे । जब करने वाला, कराने वाला और फल देने या न देने वाला वही तो है; तो मैं काहे को चिंता करूं ? मेरा कुछ है ही नहीं.. इसलिए फल से भी मैं बंधा नहीं हूं । यह एक तरीका है ।
दूसरा तरीका है कि जो भी मैंने किया है हर एक चीज उसको समर्पित कर देना । यदि मैं खाता हूं तो पहले उसे नैवेद्य दिखाना - समर्पण करना । और यदि मैं सक्सेसफुल हो जाता हूं यशस्वी हो जाता हूं तो वह भी उसी के कारण है तो उसी को अर्पित है । हर एक चीज उसको अर्पण करना ।
यह कर्म फलों को त्याग करने की युक्तियां हैं । वैसे ही कर्म फल को त्यागना आसान बात नहीं होगी ।
□ असुर्या नाम ते लोका अन्धेन तमसावृताः \
ता स्ते प्रत्याभिगच्छन्ति ये के चात्महनो जनाः \\३
जो अपनी आत्मा का हनन करते हैं वे लोग मरने के बाद अंधकार से आवृत " असूर्य "लोक स्थान पर में पहुंच जाते हैं ।
जो लोग गलत काम करते हैं; वह लोग आत्मा का हनन करते हैं । उन्हें घोर मृत्यु के बाद अंधकार भुगतना पड़ेगा । वैसे देखा जाए तो आत्मा कभी मरती नही. हनन यह केवल भावार्थ है । मतलब भगवान परब्रह्म जो चीज नहीं चाहता है वह चीज जो व्यक्ति करता है वह आत्मा का हनन माया माना गया है । मरने के बाद ही क्या ? जिते जी भुगतना पड़ेगा । अभी कितने गुंडे हैं जो हमारे जानकारी में है; वे अंधकार में जीवन जीते हैं । उनके पास बहुत पैसा है, संपत्ति है, आदमी है, शस्त्र है । लेकिन घबराते हैं । सीधे हमारे जैसे टहलने को बाहर नहीं निकल सकते । भले कितने भी लाइट लगाए घर में; वह तो छुपे हुए ही हैं ना ? तो वह गुंडे अंधकार में ही जीते हैं ना ? क्योंकि वें जो आत्मा का हनन करने वाली चीज बताई है वही चीज करते हैं । हर बात आत्मा के विरुद्ध करते हैं ।
हम यदि थोड़ी सी भी ऐसी विरुद्ध बातें करेंगे तो हमें भी भुगतना पड़ेगा इसी जन्म में । अगले जन्म का, या स्वर्ग / नरक का किसने देखा है ? इसी जन्म में भुगतना पड़ेगा ।
क्या है आत्मा के लिए प्रिय व्यवहार ?
- अहिंसा सत्य अस्तेय ब्रह्मचर्य अपरिग्रह ।
हिंसा नहीं करना, सच बात बोलना, दूसरे का नहीं छिनना, सेक्स को कंट्रोल रखकर अपने जोड़ीदार तक सीमित रखना और दूसरे के यहां कुछ भी स्वीकार नहीं करना । यह पांच चीज हैं आत्मा के लिए प्रिय ।
और आत्मा को अप्रिय है इसके विरुद्ध की सारी बातें । सर्वसाधारण तया पूर्व कल में सामान्य लोग बहुत ज्यादा गड़बड़ नहीं करते थे । लेकिन आजकल सामान्य लोग भी भ्रष्टाचार करते हैं; तो वह भी आत्मा के विरुद्ध ही आता है । वह भी भुगतेंगे । या तो पकड़े जाएंग
या तो बच्चे बिगड़ेंगे नहीं तो खुद का स्वास्थ्य खो देंगे ।
[ कभी-कभी बहुत बुरी बातें करने वालों को कोई सजा मिलती दिखाई नहीं देती; उसका कोई भी अर्थ स्पष्ट नहीं होता । अपवाद मानकर छोड़ देना ही ठीक रहेगा ]
इसलिए प्रार्थना करेंगे
" हम चले नेक रस्ते पे - हमसे भूल कर भी कोई भूल हो ना । "
जय जगत् 🙏
हरि 🕉️ तत्सत् ।।
आपका अपना, डॉक्टर प्रसाद फाटक. पुणे. भारत.
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