उपनिषद ज्ञान भाग ~ १७ क्या छोड़कर जाना है मरने के बाद ?
● उपनिषद ग्यान भाग~ १७
इशावास्य उपनिषद श्लोक ~ १७ :
वायुरनिलममृतमथेदं भस्मान्तम् शरीरम् ।
ॐ ऋतो स्मर कृत स्मर ऋतो स्मर कृत स्मर ।॥ १७ ॥
○ जो प्राण-वायु शरीर में रहता है वह मृत्यु के समय विश्व के अनिल अर्थात् विश्व के प्राण में लीन हो जाता है ।
यह शरीर नही वह प्राण - वह आत्मा ही अमर है । शरीर तो जबतक भस्म नहीं हो जाता तभी तक है ।
हे कर्म करने वाले जीव; तुमने आगे जो कर्म करना है उसे स्मरण कर, और कृतः --जो तू अबतक कर्म कर चुके हो, उसे स्मरण कर ॥१७।।
जो पिंड में है; वही ब्रम्हांड में है means whatever principle is in our body the same is in the world / universe - यह हमारा तत्वज्ञान कहता है । उसके अनुसार जो शरीर में वायू है प्राण है वह महद् आकाश मे या विशाल महाभूतो मे होने वाले अनिल है उसमे विलीन हो जायेगा । शरीर तो बस तब तक है जब तक उसमें प्राण है; बाद में तो उसे भस्म ही हो जाना है ।
वे देखते हैं कि यह पार्थिव शरीर अग्नी को समर्पित किया जायेगा । मुनिवार देख सकते है की; मेरे प्राण शरीर को छोडके जा रहे है; शरीर को अग्नी के हवाले किया जा रहा है । देख सकते है की आगे क्या होने वाला है ? He can visualize his own death and the things that happen then after.
यह उन्होने जो पूरी जिंदगी भर किया उसका फल है । इसीलिए उनमे इतनी शक्ती है की वे इतनी सोच कर सकते है ।
सब छोडकर जब हम खुद जो आत्मा है वो परमात्मा से विलीन हो गए तब क्या पीछे रहने वाला है ? शरीर नही होगा, आत्मा भी नही होगी रहेगा । तब तो स्मृतियाँ ही रह जाएगी ।
इसीलिए यह सोच विचार भी रख रहा हूं कि; हम मे से कोई ये कैसे चाह सकता है के मेरे मरने के बाद मेरे लिये कुछ बुरी भावना पीछे रहे ? जो अब तक किया है उसका स्मरण करे, जो आगे की गती है उसके लिए भी सोच लें । मै यंहा पर कहता हुं कि; अगले जनम का किसने देखा है ? कम से कम आज से मृत्यू के घडी तक ऐसा कुछ काम करूं के जिससे मेरी याद कुछ अच्छे से ही हो । किसी के कुछ ना कुछ तो काम आउं ।
ऐसे काम करेंगे, ऐसे अच्छे विचार होंगे तब तो ऋषीमुनी की तरह एक विलक्षण भाव अंतिम घडी तक मन मे रहेगा, समाधान रहेगा । ऋषीगण का भय से मुक्त मन है; वह भी इस सोच और कार्य से ही तो मिलेगा ना ।
हम यदि आज से ही अच्छा सोचेंगे, आज से ही अच्छा करेंगे तभी ऐसा भयमुक्त मन भी प्राप्त हो सकता है ।
सर्वार्थ से ही एक संपन्न, सुखी और समाधानी जीवन का यह मार्ग भी हो सकता है ।
हरि 🕉️ तत्सत् ।।
आपका अपना, डॉक्टर प्रसाद फाटक. पुणे. भारत.
9822697288
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