उपनिषद ज्ञान भाग ~ १५ Fear of death ?
● उपनिषद ज्ञान भाग १५ इसोपनिषद श्लोक १५ हिरण्मयेन पात्रेण सत्यस्यापिहितं मुखम् ।
तत्त्वं पूषन् अपावृणु सत्यधर्माय दृष्टये । १५॥
○ हिरण्मय चमक-दमकवाले ढकने से सत्य का मुख ढका हुआ है ।
हे पूषन् ! --अयनो पुष्टि अर्थात् पोषण कर्ता सूर्यदेव;
मैं सत्य- धर्म को देखना चाहता हूं इसलिए उस हीरण्मय पात्र का, या ढक्कन का आवरण हटा दे, पर्दे को उठा दे ॥१५॥
■ यहां पर हम चिन्मय स्वामी के हिसाब से अर्थ बताएंगे । स्वामी जी कहते हैं कि; इस 15 वे श्लोक में एक ऋषीवर / एक मुनिवर अपने आप मृत्यु के द्वार पर खड़ा पातें है और फिर कुछ चीजों का सोच विचार करते है और इसी कारण से सूर्य देव से कुछ मांगते भी है । वह कहते हैं; हे सूर्य देव अब मेरी अंतिम घड़ी आ गई है । और मैं सत्य धर्म को देखना चाहता हूं । जब तू अपने इस प्रकाश को फैला कर रखेगा तो मुझे यह भौतिक सृष्टि ही दिखाई देगी । फिर मैं उस सच को उस परम् ब्रह्म को देख नहीं पाऊंगा । तुम्हारी सुनहरे रंग की आभा मेरे लिए एक पर्दा हो जाएगा । प्रकाश होकर भी पर्दा हो जाएगा । इसलिए हे रवीदेव आप के यह जो सहस्त्र रश्मि / कीरण है उन्हे हटा लो और मुझे सत्य देखने दो ।
यहां पर हम यह बात समझ लेंगे की कितने निर्भय होकर वे मुनीवर मृत्यु के सामने जा पाते हैं । हम तो मृत्यु से क्षण क्षण डरते हैं । उसका उल्लेख भी हम नहीं चाहते हैं । और मृत्यु के डर से ही अपना जीवन भी भयावह कर देते हैं ।
Here We can Learn how ro face the fear of death ? सीखेंगे की कैसे मृत्यु का सामना करना है ? खुद सूर्य देव को बता रहे हैं कि अपने रश्मियों को दूर करो और फिर मुझे उस परम चैतन्य का दर्शन होगा । जब हमें सर्वव्यापी सर्वसाक्षी को देखना समझना कल्पना करना होगा; तो हमें प्रकाशित पेड़ पौधे आदि देखने से बेहतर होगा कि हम अमावस की रात star-studded आकाश को देखें । तब हमें उसकी व्याप्ति का थोड़ा सा अंदाजा लग जाएगा । अनंत अपार परमेश्वर को देखना आसान होगा ।
आगे के श्लोक भी इस विषय में ही लिखे हैं । वह अगले एपिसोड में देखेंगे ज्यादा जानकारी के लिए इस विषय के इसी नाम का वीडियो मेरे चैनल पर भी देखना ना भूले ।
हरि 🕉️ तत्सत् ।।
आपका अपना, डॉक्टर प्रसाद फाटक. पुणे. भारत.
9822697288
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