उपनिषद ज्ञान भाग ~ १६
● उपनिषद ज्ञान भाग ~१६ ईशोपनिषद श्लोक ~१६ पूषन्नेकर्षे यम प्राजापत्य व्यूह रश्मीन्सम्ह । तेजो यत्ते रूपं कल्याणतमं तत्ते पश्यामि योऽसावसौ पुरुषः सोऽहमस्मि ।१६॥ ○ सूर्य देव के गुणके अनुसार नाम गिना रहे हैं - हे पूषन्-- पुष्टि देनेवाले, एकर्ष --ऋषियों मे एक अनोखे, यम - नियमन करनेवाले, सूर्य -- प्रचण्ड प्रकाशमान, प्राजापत्य --प्रजाओं के पति - हे सूर्यदेव; आपकी रश्मियों का व्यूह चारों तरफ फैल रहा है । उन्हीं रश्मियों के कारण प्रकृति के नाना रूप प्रकाशमान हो रहै है । मैं यह प्रकाश आपका न समझकर प्रकृति का समझ रहा हूं । और इसीलिए प्रकृति को ही सब-कुछ समझ बैठा हूं । आप अपनी रश्मियों को समेटिये ताकि मै आपके कल्याणतम तेजोमय रूप के दर्शन कर सकूं । अहा ! आप के, तेज के, प्रकाश के किरण एक जगह सिमिट जाने से जो आपका कल्याणतम तेजस्वी पुरुष-रूप प्रकट हुआ, वह कितना ज्योतिर्मय है ! मै भी वही हुं-- मै भी ज्योतिमंय पुरुष परमात्मा हूं ।१६॥ तो हमने देखा कि वे साधु पुरुष मृत्यु के शय्या पर हैं और कुछ सोच रहे है । उन्हे जाने से पहले कुछ खाने की इच्छा नहीं हो रही है, कुछ पीने की...