उपनिषद ग्यान भाग ~ ९ Upanishad wisdom 9

उपनिषद ज्ञान भाग ~ ९
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स॒पर्यगाच्छक्रमकायमव्रणमस्नाविरम् शुद्धमपापविद्धम्‌ । कविर्मनिषी परिभूः स्वथंभूर्याथातथ्यतोऽर्थान्व्यदधाच्छाश्वतीभ्यः समाभ्यः ।। ८॥  इशोपनिषद ।
■ इस श्लोक में परब्रम्ह का संपूर्ण वर्णन किया है ।
अर्थ : ● वह ( परब्रम्ह ) सब जगह रहता है । वह शुद्धता / purity की चरम-सीमा है । वह तेजस्वी और चमकदार है । इस रूप का ज्ञान पाकर शांत बैठकर ध्यान मे उसे महसूस करके भरपूर आनंद की अनुभूति होती है । 
● उसको body नहीं, body नही तो जख्म कहां ? नस-नाडी कहां ?
 It's above bodily elements.
● वह शुद्ध है = pure है ।
वह “पापरहित' है क्यों की वह कभी गलत काम कर ही नहीं सकता ।
● वह " कवि " है = वेद काव्य का निर्माण करता है । 
वह " मनीषी " है  = हमारे मन का वही मालिक है स्वामी है । 
● वह सब जगह मौजूद है  और वह " स्वयंभू " है मतलब कोई उसे पैदा नहीं करता । 
● जो भी हमारे सारे व्यवहार है; उनका कंट्रोल वही करता है | जीवन के लिए आवश्यक पदार्थो की व्यवस्था, जिस समय जो-कुछ हमे मिलना चाहिए वे सारे प्रबन्धन वही कर रहा है ॥८॥
 He supplies us.
जब इस परमात्मा के यह सब रूप गुण हम जानने लगेंगे, उनका मनन करेंगे - तो वह गुण हमारे अंदर भी आ जाएंगे और हमारा जीवन वैसा ही सफल v सुंदर हो जाएगा ।  हम चैतन्य का अनुभव करने लगेंगे । we feel ecstatic enthusiasm in our minds.
 हम पाप / दुष्कृतियों से मुक्त रहेंगे । शरीर या मन के दुखों की इंटेंसिटी काम हो जाएगी और कल की चिंता भी कम होगी - क्योंकि करने वाला तो वह ही है ।
। श्लोक 8 卐 
।। हरि 🕉️ तत्सत् ।। 

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